Add To collaction

द गर्ल इन रूम 105

कि जब चाहे किसी को भी थप्पड़ मार दिया जाए। खासतौर पर तब जब उनके सामने कोई ग़रीब या कमजोर आदमी हो।


"तुम लोग अच्छी तरह से जानते हो कि ये टेररिस्ट हैं, फिर भी तुम इन्हें रूम देते हो और पुलिस को ख़बर नहीं करते।" अहमद की आंखों में आंसू आ गए। उसने हाथ जोड़ते हुए कहा, 'साहब, हम लोकल लोग करें भी तो क्या? वे

लोग यहां जाते हैं, और जब चाहे, चले जाते हैं। मना करने पर बंदूक निकाल लेते हैं। हम उन्हें रख लें तो पुलिस और आर्मी के लोग हमें दुत्कारते हैं। हम करें तो क्या करें? हमारे घर में छोटे बच्चे हैं, जिनकी जिम्मेदारी हमारे ही सिर पर है।'

"तुम भी इंडिया से नफ़रत करते हो?"

"नहीं, साहब मेरी तो रोजी-रोटी ही इंडियन टूरिस्टों से चलती है।' "ये आदमी इतने दिनों से यहां पर क्या कर रहा था?' इंस्पेक्टर ने सिकंदर की और इशारा करते हुए कहा ।

'बो हर दिन कुछ घंटों के लिए बाहर जाता था। कभी-कभी वो लॉबी में नए लड़कों से मिलता था।

नए आतंकवादियों की भर्ती के लिए?"

'मुझे नहीं मालूम, साहब।" "तुम्हें उसके रूम से कुछ मिला?"

'हमने रूम की किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाया है। आप जाकर देख सकते हैं।'

'केशव, सुनो?' मेरी आंखें सिकंदर के चेहरे पर जमी हुई थीं। कल ही तो मैं इससे बातें कर रहा था। 'जी, इंस्पेक्टर?'

"तुम जिस प्राइम सस्पेक्ट को गिरफ्तार करवाना चाहते थे, वो तो मर गया।" "हं. हं. हां..." मैंने बोलने की कोशिश करते हुए कहा। सौरभ वॉशरूम की ओर दौड़ा। मुझे उसके उल्टियाँ

करने की आवाज़ आई।

"एम्बुलेंस बुलाओ और बॉडी को यहां से हटाओ, इंस्पेक्टर ने एक कांस्टेबल से कहा। फिर दूसरे की ओर मुद्रा और कहा, "रूम की जांच करो। देखो कहीं कोई सुसाइड नोट तो नहीं है।" मैं रूम में स्टडी वेयर पर बैठ गया। सौरभ की आवाज़ सुनकर मुझे भी उबकाई आने लगी थी। कांस्टेबल ने तकिया उठाकर और डेस्क की दराज खोलकर देखा ।

'अगर सब लोग बाहर चले जाएं तो मैं अच्छे से जांच कर सकूंगा, कांस्टेबल ने कहा।

सौरभ और मैं लॉबी में एक सोफ़े पर बैठे थे। हम दोनों ही कुछ बोल नहीं पा रहे थे। इंस्पेक्टर सराफ हमारे सामने

थे और फोन पर किसी से बात कर रहे थे। आधा घंटे बाद रूम की जांच करने वाला कांस्टेबल नीचे आया। उसके हाथ में एक लिफाफा था। "यह उसकी जेब से मिला है, उसने कहा 'इसमें लिखा है- हाशिम भाई के लिए। प्लीज़, इसे तेहरीक के

मेरे किसी भाई तक पहुंचा देना। वो लोग मुझे लेने आ जाएंगे।''

इंस्पेक्टर ने लिफाफा खोला। उसमें एक काराज़ था, जिस पर हाथ से एक वेब एड्रेस लिखा था- www.Bit.ly/Alvida Tehreek "ये क्या है?' इंस्पेक्टर ने कहा।

'ये एक एब्रिविएटेड वेब लिंक है। देखते हैं,' सौरभ ने कहा। सौरभ ने होटल के कंप्यूटर में वह वेब एड्रेस लिखा। उस लिंक से एक यूट्यूब वीडियो बुला, जिसमें हम

सिकंदर को होटल के उसी रूम में बैठा देख सकते थे। पहले उसने बुदबुदाकर कुछ दुआएं पढ़ीं, फिर कैमरे की ओर

देखते हुए कहा-

"हाशिम भाई, माफ़ी मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं। वो लोग

एक ऐसे गुनाह के लिए मुझे पुलिस के हाथों में सौंप देंगे, जो मैंने किया ही नहीं। मेरी अपनी आपा का खून?

   0
0 Comments